Wednesday, March 6, 2019

उम्र तल्ख़ हक़ीक़त है मगर जितना तुम बदले हो उतना नही बदला जाता है- राना

Wednesday, May 16, 2018

टूट गया ।

इतने घुटने टेके हमने
आखिर घुटना टूट गया
पत्थर का तो कुछ नहीं बिगड़ा
लेकिन शीशा टूट गया
बचपन घर से बाहर निकला
और खिलौना टूट गया
सूनी कलाई देख के लेकिन
चूड़ी वाला टूट गया
मैं क्या जानूं  रोजा है या मेरा
रोजा टूट गया ।
टूटा फूटा नाच रहा है
अच्छा खासा टूट गया ।
                           मु.राना

Sunday, May 6, 2018

गिड़गिड़ाये नहीं हां हमने दो सना से मांगी भीख भी
 मांगी तो खुदा से मांगी
हाथ बांधे रहा चेहरा झुकाये रक्खा और दाद भी मांगी तो हया से मांगी ।

Wednesday, February 14, 2018

What is there in the name ?

When I was born on 27th February,1950,my Grandfather,Sri Satish Chandra Dubey gave me my name. The name was  Ram Nagina Dubey. When I was taken to school by my uncle Sri Shyam Sundar Dubey for admission he deleted Ram from my name and since then I am Nagina Kumar Dubey.When I along with my uncle whom we called lovingly Babuji returned home after my admission unfortunately we happened to meet my grandfather who had come from Bandanwar to attend to his court duties at Godda Bar. Without taking any time his first question was  "what was the name recorded in the school?" I told him the truth. The moment he knew the truth his anger was on the 7th sky. Not only he chided Babu but remarked "you have jeopardised the name,this name has now no meaning".
Now after 68 years when neither the name giver nor the name recorder is present in this world the government has released a list of benificiaries eligible for compensation in lieu of a small piece of our ancestral land acquired.Surprisingly it is the original name Ram Nagina and not Nagina in the list.
Thus we see that there may not be anything in the name but there is definitely something in the name giver.
What goes around comes around.

Thursday, February 1, 2018

हम हैं ।

एक जख्मी परीन्दे की तरह तेरे जाल में हम हैं।
ऐ इश्क अभी तक तेरे जंजाल में हम हैं।
हंसते हुए चेहरे ने भ्रम रखा हमारा ।
वो देखने आया था किस हाल में हम हैं।
अब आपकी मर्जी है, सम्हालें, न सम्हालें,
खूशबु की तरह आपके रुमाल में हम हैं।
एक ख्वाब की सूरत ही सही, याद है अब तक----
मां कहती थीं--------------
ले ओढ़ ले, -------------- इस शाल में हम हैं।

एक खयाल। मुनव्वर के नाम ।

आते हैं जैसे जैसे बिछड़ने के दिन करीब
लगता है जैसे रेल से कटने लगा हूं मैं ।
फिर सारी उम्र चांद ने रखा मेरा खयाल
एक दिन कह दिया कि घटने लगा हूं मैं ।
मुद्त़ों पहले जो डूबी थी वो पूंजी मिली ।
जो कभी दरिया में फेंकी थी वो नेकी मिली।
खूदकुशी करने पर आमदा थी नाकामी मेरी ।
फिर मुझे दीवार पर चढ़ती ये चींटी मिली
और मैं इसी मिट्टी से उठा था किसी बगूले की तरह।
और फिर एक दिन इसी मिट्टी में मिट्टी मिल गई।

मैं इसे ईनाम समझूं या सजा का नाम दूं।
अंगूलिया कटते ही तोहफे में अंगूठी मिल गई।
 आज फिर किसी ने लक्षमी को ठोकर मार दी।
  कूड़ेदान में एक बच्ची मिल गई।।एट