Thursday, February 1, 2018

हम हैं ।

एक जख्मी परीन्दे की तरह तेरे जाल में हम हैं।
ऐ इश्क अभी तक तेरे जंजाल में हम हैं।
हंसते हुए चेहरे ने भ्रम रखा हमारा ।
वो देखने आया था किस हाल में हम हैं।
अब आपकी मर्जी है, सम्हालें, न सम्हालें,
खूशबु की तरह आपके रुमाल में हम हैं।
एक ख्वाब की सूरत ही सही, याद है अब तक----
मां कहती थीं--------------
ले ओढ़ ले, -------------- इस शाल में हम हैं।

1 comment:

  1. २० जनवरी दरभंगा-पटना-भागलपुर होते हुए जब जसीडीह जं पर मां-बाप को जमशेदपुर के लिए बेबी के विवाह के लिए ट्रेन में चढ़ा कर चलती ट्रेन से उतरा तो चलती ट्रेन से ही मां ने अपने बदन से उतार कर अपना शाल मेरे लिए फेंका क्यों कि मैं हाफ स्वेटर में थाऔर मुझे तुरंत पटना लौटना था।
    मां तुझे सलाम!

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