Wednesday, January 24, 2018

शायरी

मैं अपने आपको इतना समेट सकता हूं
कहीं भी कब्र बना दो मैं लेट सकता हूं।
मंजिल करीब आते ही एक पांव कट गया
चौड़ी हुई सड़क तो मेरा गांव कट गया

अब एतबार के काबिल नहीं रहे आंसू ।
कोइ भी पुछे तो सब कुछ कबूल आते हैं।।

उनके होंठों से मेरे हक़ में दोआ निकली है
जब मर्ज फैल चुका है तो दवा निकली  है।
एक ही झटके में ये हो गयी टुकड़े टुकड़े
कितनी कमजोर ये वफ़ा निकली है।
बड़ी कड़वाहटें हैं, इसलिए ऐसा नहीं होता
शकर खाता चला जाता हूं, मुंह मिठा नहीं होता।

फकीरों की ये कुटिया है, फरावानी नहीं होगी
मगर जब तक रहोगे, हां, परेशानी नहीं होगी ।

मैं,अब,आंगन में सो जाता हूं, कमरे में नहीं सोता ।
मेरे बच्चों को अब उतनी परेशानी नहीं होगी ।।

ये आंसू आपको रुसवा कभी होने नहीं देंगे ।
मेरे पाले हुए हैं, इनसे नादानी नहीं होगी ।।

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