Saturday, January 27, 2018

न मैं शायर हूं और न ये शेर मेरे अपने हैं जिनके हैं उन्हें मुनव्वर कहते हैं

ऐसे उडूं कि जाल न आए खुदा करे।
रस्ते में अस्पताल न आए खुदा करे।।
अब उससे दोस्ती है तो दोस्ती रहे।
शीशे में कोई बाल न आए खुदा करे।।
मेरी मुठ्ठी से ये बालू सरक जाने को कहती है
कि अब ये जिंदगी, मुझसे भी थक जानें
 को कहती है।
जिसे हम ओढ़ कर निकले थे आगाजे जवानी में
वो चादर जिंदगी की अब मसक जाने को कहती है।
कहानी जिंदगी की क्या सुनायें अहले मेहफिल को
शकर घुलती नहीं और खीर पक जाने को कहती है।
मैं अपनी लड़खड़ाहट से परेशां हूं मगर पोती मेरी अंगुली पकड़कर दूर तक जाने को कहती है।

दुश्मनी हो तो ऐसी कि दोनों में से एक रहें।
और ताल्लूकात हो तो ऐसा कि तुम  पुकारो और हम चले आएं।

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